Tuesday 1 May 2018

सांस लेना भी हो गया भारी

दिल पे थी ऐसी कैफ़ियत तारी
सांस लेना भी हो गया भारी
कोई चेहरा रहा निगाहों में
रात आँखों में कट गयी सारी
सिर्फ इक बात ठान ली मैंने
यूँहीं रखनी है अपनी ख़ुद्दारी
थी बहुत दूर मंज़िल ए मक़सूद
हर क़दम पर है एक दुश्वारी
बस्तियाँ फूँकने को काफ़ी है
सिर्फ हल्की सी एक चिंगारी
हम ज़माने में रह गए पीछे
क्या करे हम में थी वफ़ादारी
लोग नादान तुमको कहने लगे
इतनी अच्छी नहीं हैं होशियारी
पूछ मत हाल अब हमारा तू
एक दिल है हज़ार बीमारी
आप तो बदहवास हो बैठे
मैं निभाती रही रवादारी
जिस्म ने हार मान ली थी सिया
हौसला मैं तो पर नहीं हारी
Siya Sachdev

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