ज़ह्र को जो दवा समझता है
वो मरज़ को शिफ़ा समझता है
वो मरज़ को शिफ़ा समझता है
क्या उदासी है मेरे चेहरे पे
मेरा दुःख आइना समझता है
मेरा दुःख आइना समझता है
कितनी तनहा हूँ मैं हुजूम में भी
तू कहाँ जानता समझता है
तू कहाँ जानता समझता है
हूक उठती है मेरे सीने से
और वो क़हक़हा समझता है
और वो क़हक़हा समझता है
जिससे वाबस्ता हूँ मैं शिद्दत से
क्या वो हर्फ़ ए वफ़ा समझता है
क्या वो हर्फ़ ए वफ़ा समझता है
अस्ल में शेर कहने वाला ही
दर्द तख़लीक़ का समझता है
दर्द तख़लीक़ का समझता है
कोई देखे तो अंदरून उसका
खुद को जो पारसा समझता है
खुद को जो पारसा समझता है
जाने क्या क्या गुमान हैं उसको
जाने वो ख़ुद को क्या समझता है
जाने वो ख़ुद को क्या समझता है
नाव को किस जगह डुबोना हैं
ये मेरा नाख़ुदा समझता है
ये मेरा नाख़ुदा समझता है
उसकी मन्ज़िल हूँ मैं मगर ज़ालिम
वो फ़क़त रास्ता समझता है
वो फ़क़त रास्ता समझता है
राय उसको सिया मैं देती हूँ
जो मेरा मश्वरा समझता है
जो मेरा मश्वरा समझता है
siya