नुमाईश  वो जो इतनी कर रहा है 
तो क्या गुमनामियों से डर रहा है
भले  पिंजरे में हैं ये जिस्म मेरा 
मगर दिल तो उड़ाने भर रहा हैं 
बहुत औरों की साँसे जी चुकी मैं 
मेरे अंदर का इन्सां मर रहा है 
रही है दरबदर ये तो हमेशा 
कभी औरत का कोई घर रहा है 
जुदा होने पे माइल हो गया अब 
वफ़ा का जो कभी पैकर रहा है 
निकलता  ही नहीं अब मेरे दिल से 
मेरी आँखों में जो दम भर रहा है 
जलाती क्या ग़मों की धूप मुझको 
तेरा साया मेरे सर पर रहा है 
कोई तो होगी उसमें खासियत जो 
ज़माना आज उसपे मर रहा है 
नहीं साबित हुआ जुर्मे मोहब्बत 
यही इलज़ाम मेरे सर रहा है 
siya
 
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