Saturday, 12 December 2015

हालात देख कर मेरी तहरीर देख कर

हालात देख कर मेरी  तहरीर देख कर 
रोने लगे वो दर्द की तफ़्सीर देख कर 

ए काश तुझ में इतना समां जाऊं के हर इक 
पहचानता  मुझे तेरी  तस्वीर देख कर 

उठती है आँख बारहा  देहलीज़ की तरफ 
अटका हुआ हैं दम तेरी ताख़ीर  देख कर 

ख्वाबो से दिल को होती थी तस्कीन जिस क़दर 
उतना ही डर गयी हूँ मैं ताबीर देख कर 

रहती हैं जिनकी दोस्तो  तदबीर  पर निगाह 
चलते नहीं हैं वो कभी तक़दीर देख कर 

मुझको बदलते वक़त का एहसास हो गया 
हैरान हूँ मैं अपनी ही तस्वीर देख कर 

जो उम्र मेरी खास थी ख्वाबों में कट गयी 
करना भी क्या है अब मुझे ताबीर देख कर

मंज़िल तो सामने है मगर क्या करें  सिया 
बैठे हुए हैं  पांव की ज़ंजीर देख कर 

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