Wednesday, 17 June 2015

nazm saraab

सराब
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जाने किसकी तलाश रहती है
कोई अंजाना अक्स क्यों आकर
मन के आंगन में रक़्स करता है
जैसे कोई उदास सी खुशबू
मेरे तन मन में फैल जाती है
लौट जाती हूँ अपने माज़ी में
जाने क्या है जो खो गया मुझ में
जाने क्या है जो भूल बैठी हूँ
याद करती हूँ ख़ूब मैं लेकिन
याद कुछ भी मुझे नहीं आता !!!

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