जहाँ तक़दीर की हाइल कोई दीवार होती है
हर इक कोशिश वहाँ इंसान बेकार होती है
बड़ी पेचीदा होती है बहुत दुश्वार होती है
बज़ाहिर देखने में राह जो दुश्वार होती है
यक़ीन जानो यही महसूस होता है की तुम आये
अगर हल्की सी आहट भी पसे दीवार होती है
बहुत आँसू बहाती है ग़रीबी अपनी हालत पर
किसी की मुफ़लिसी जब ज़ीनत ए बाज़ार होती है
उसे बस देखती रह जाती है मौजे हवादिस की
की कैसे अज़्म वालों की ये कश्ती पार होती है
मुख़ालिफ़ शाह के लब खोलने की किस में हैं
बग़ावत सुर्खरू किसकी भरे दरबार होती है
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