फ़रेब ए आरज़ू ही खा रही हूँ
मैं अपने आप को झुठला रही हूँ
किसी के ग़म में घुलती जा रही हूँ
संभल जा दिल तुझे समझा रही हूँ
मेरे ग़म दर्द आहें और आंसू
इन्ही से खुद को मैं बहला रही हूँ
इन्ही सदमों का दिल पे बोझ लेकर
तुम्हारी ज़िंदगी से जा रही हूँ
किसी के नाम से रुसवा रही हूँ
किसी को चाह के पछता रही हूँ
किसी को चाह के पछता रही हूँ
ये चाहत,ये वफायें ये तड़पना
मैं इनके नाम से घबरा रही हूँ
मैं इनके नाम से घबरा रही हूँ
हैं क्यूँ उलझे हुए रिश्तों के धागे
इसी उलझन को मैं सुलझा रही हूँ
इसी उलझन को मैं सुलझा रही हूँ
कोई साथी कोई महरम नहीं था
भरी दुनिया में भी तन्हा रही हूँ
भरी दुनिया में भी तन्हा रही हूँ
समझना ही नहीं जो चाहता कुछ
उसी पत्थर से सर टकरा रही हूँ
उसी पत्थर से सर टकरा रही हूँ
ख़लिश बन कर खटकते हैं जो अब भी
उन्ही ज़ख्मो को मैं सहला रही
उन्ही ज़ख्मो को मैं सहला रही
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