दास्ताँ अपनी जो सुनाता हैं
वो हमें जान के रुलाता है
वो शहनशाह है मोहबत का
ताज को जो महल बनाता है
रूप उसका अजब सही लेकिन
दिल में एहसास वो जगाता है
उसकी ग़ज़लों की धुन बनाती हूँ
उसका मेरा अजीब नाता है
अपने आंसू छुपा के पीता है
प्यास ऐसे ही वो बुझाता है
इक मुसव्विर है या कि है आशिक़
मेरी तस्वीर जो बनाता है
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