Friday, 3 October 2014

यहीं एक काम करना रह गया है

हमें ख़ुद से गुज़रना रह गया है
यहीं एक काम करना रह गया है
तेरे ग़म से उभरना रह गया है
फिर उसके बाद मरना रह गया है
निगाहों से बहुत ही दूर है वो
मगर दिल से उतरना रह गया है
मैं ख़ाली जिस्म हूँ मिटटी का मुझको
हवाओं में बिखरना रह गया है
मैं सब नज़रें झुकाये सुन रही थी
तेरे जुमलों में वरना रह गया है
हुई जब शाम सब सय्याह लौटे
फ़क़त जंगल में झरना रह गया है
ये कह के फिर उड़े ज़ख़्मी परिन्दे
फ़ज़ा में रंग भरना रह गया है
बुलंदी पर सिया मैं आ गयी हूँ
यहाँ पर अब ठहरना रह गया है
hame'n khud se guzarana rah gaya hai
yaheen ik kaam karna rah gaya hai
tere gham se ubhrana rah gaya hai
phir uske baad marna rah gaya hai
nigahon se bahut hi door hai wo
magar dil se utarana rah gaya hai
main khali jism hoon mitti ka mujhko
havao'n mein bikhrna rah gaya hai
Main sab nazrein jhukaey sun rahi hoon
tere jumlo'n me warna rah gaya hai
Huwi jab shaam sab saiyaah loute
Faqat jangal me jharna rah gaya hai
ye kah ke phir ude zakhmi parinde
Faza me rang bharna rah gaya hai .
Bulandi par 'siya' main aa gayi hoon
yahan par ab thahrna rah gaya hai

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