Thursday, 25 September 2014

ख़ुदा ही फ़ज़्ल करेगा तो कुछ भला होगा

दराज़ कासा ए दस्त ए दुआ हुआ होगा
ख़ुदा ही फ़ज़्ल करेगा तो कुछ भला होगा
जलाये बैठी हूँ पलकों पे इंतज़ार की लौ
तकूँगी राह चराग़ों से रतजगा होगा
सुकून बह गया सारा लहू की बूँदों में
उसे कुरेद के ज़ख़्मों को क्या मिला होगा
उसे गुमान के सजदा करुँगी मैं उसको
मेरा नहीं वो किसी और का ख़ुदा होगा
कहा तो था कि नए हमसफ़र के साथ न जा
मैं जानती थी तेरे साथ कुछ बुरा होगा
पिए है सब्र के आँसू ही रोज़ ओ शब मैंने
वो आज भी मेरी हालत पे हँस रहा होगा
इधर उधर मैं उसे ढूंढती रही थी सिया
ख़बर न थी मेरे अशआर में छुपा होगा
Daraaz kaasa-e-dast-e-du'a hua hoga
Khuda hi fazl karega to kuchh bhala hoga.
Jalaaye baithi hu'n palko'n pe intizaar ki lau
Takungi raah chiraagho'n se ratjaga hoga
Sukoon bah gaya saara lahu ki boondo'n me'n
Use kured ke zakhmo'n ko kya mila hoga
Use gumaan ki sajda karungi mai"n usko
Mera nahi"n wo kisi aur ka khda hoga.
Kaha to tha ki naye hamsafar ke saath na ja
Main jaanti thee tere saath kuch bura hoga ...
Piye hain sabr ke aansun hi roz o shab main ne
wo aaj bhi meri haalat pe hans raha hoga
Idhar udhar mai'n use dhoondhti rahi thi Siya
Khabar na thi mere ash'aar me"n chhupa hoga
siya

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