बिसात पर उसे शह दूँ की अपनी मात करूँ
कभी ये खुद से कभी आईने से बात करूँ
तेरा ख़्याल तेरी आरज़ू हो घर मेरा
तुझी में दिन को गुज़ारूं तुझी में रात करूँ
वो सामने हो तो खुलती नहीं ज़बान मेरी
निग़ाह दे जो इजाज़त तो उससे बात करूँ
तेरे ही नाम का आँचल रहे सदा सर पर
तेरे ही ज़िक्र से आँगन को क़ायनात करूँ
सिया दुआ है ख़ुदा से वो वक़्त आ जाये
मैं उसके नाम ही अपनी ये कुल हयात करूँ
कभी ये खुद से कभी आईने से बात करूँ
तेरा ख़्याल तेरी आरज़ू हो घर मेरा
तुझी में दिन को गुज़ारूं तुझी में रात करूँ
वो सामने हो तो खुलती नहीं ज़बान मेरी
निग़ाह दे जो इजाज़त तो उससे बात करूँ
तेरे ही नाम का आँचल रहे सदा सर पर
तेरे ही ज़िक्र से आँगन को क़ायनात करूँ
सिया दुआ है ख़ुदा से वो वक़्त आ जाये
मैं उसके नाम ही अपनी ये कुल हयात करूँ
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