Saturday, 12 July 2014

कभी ये खुद से कभी आईने से बात करूँ

बिसात पर उसे शह दूँ की अपनी मात करूँ 
कभी ये खुद से कभी आईने से बात करूँ 

तेरा ख़्याल तेरी आरज़ू हो घर मेरा 
तुझी में दिन को गुज़ारूं तुझी में रात करूँ 

वो सामने हो तो खुलती नहीं ज़बान मेरी 
निग़ाह दे जो इजाज़त तो उससे बात करूँ 

तेरे ही नाम का आँचल रहे सदा सर पर 
तेरे ही ज़िक्र से आँगन को क़ायनात करूँ 

सिया दुआ है ख़ुदा से वो वक़्त आ जाये 
मैं उसके नाम  ही अपनी ये कुल  हयात करूँ 

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