Thursday 12 September 2013

सुब्ह में भी रात जैसी बात है

कैसा सन्नाटा अज़ब सी  रात है 
सुब्ह में भी रात जैसी बात है 

देख ले ये एक सांसो का दिया 
मन  के आँगन में जले दिन रात है 

आज तो खाली है ये कासा मेरा 
जिंदगी ने दी ये कैसी मात है  

शहर भी जंगल बने है देखिये 
हर क़दम पर घात है प्रतिघात है 

हो गया हम पर करम सरकार का 
भूख की हमको मिली सौगात है 

आँख के आँसू हैं  मुझको क़ीमती 
मत कहो सब दर्द की खैरात है 

आदमी अपना ही दुश्मन है सिया 
हाँ यहीं सबसे बड़ा आघात हैं 

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