कैसा सन्नाटा अज़ब सी रात है
सुब्ह में भी रात जैसी बात है
देख ले ये एक सांसो का दिया
मन के आँगन में जले दिन रात है
आज तो खाली है ये कासा मेरा
जिंदगी ने दी ये कैसी मात है
शहर भी जंगल बने है देखिये
हर क़दम पर घात है प्रतिघात है
हो गया हम पर करम सरकार का
भूख की हमको मिली सौगात है
आँख के आँसू हैं मुझको क़ीमती
मत कहो सब दर्द की खैरात है
आदमी अपना ही दुश्मन है सिया
हाँ यहीं सबसे बड़ा आघात हैं
No comments:
Post a Comment