जो दिल को भाये वो तर्ज़ ए बयाँ नहीं मिलता
जहाँ में कोई भी अब हम ज़बां नहीं मिलता
क्या पूछते हो की किसने जलाया फूल सा दिल
सुलगता रहता है फिर भी धुवाँ नहीं मिलता
मैं एक रात सुकूं से जहाँ गुज़ार सकूँ
भटक रही हूँ मगर वो मकां नहीं मिलता ,
ये दुनिया देख हैरान हो रही हूँ मैं
मुझे तो कोई कहीं कारवां नहीं मिलता
पलों में भूलना आदत है इस ज़माने की
बड़े बड़ो का भी नाम ओ निशां नहीं मिलता,
न जाने आंधियाँ कितनी चली हैं पिछले दिनों
के अब तुम्हारे क़दम का निशां नहीं मिलता
ज़रा निगाह को कुछ मोतबर बना लीजे
जहाँ में चाहने वाला कहाँ नहीं मिलता
अब उससे मिलने की उम्मीद भी नहीं बाकी
सभी तो मिलते है वो बदगुमान नहीं मिलता
मैं तुमसे मिलने अकेली हूँ चल पडूँगी सिया
मुझे तो कोई कहीं कारवां नहीं मिलता ...