मुझको अच्छा सिला दिया तूने
बेवफा दिल जला दिया तूने
क्या सुनाती मैं दास्तान ए ग़म
बीच में ही रुला दिया तूने
फिर अँधेरे निकल गए घर से
एक दीपक जला दिया तूने
अपने कांधो पे मुझको बैठा कर
खुद से ऊँचा उठा दिया तूने
क्या अँधेरे अज़ीज़ हैं इतने
फिर से दीपक बुझा दिया तूने
जी रही थी ग़मों के साए में
और मुझे हौसला दिया तूने
एक बूढी गरीब औरत को
कम से कम आसरा दिया तूने
बहुत खूब.
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