अपनी गलती जो सदा, करता है स्वीकार.
उस मानव का विश्व में , होता है सत्कार.
त्राहि त्राहि करने लगी जनता चीख पुकार
इतनी भीषण हो गयी, मंहगाई की मार
हिम्मत कहती है सदा,कभी न मानो हार,
दुःख के परबत को तभी, कर सकते हो पार
सावन आया झूम के रिमझिम पड़ी फुहार
धरती भी करने लगी ख़ुद अपना सिंगार
डाली पर झूला पड़ा ,झूल रहे नर नार
झूम रहे धरती गगन , झूम रहा संसार
बिटिया आई मायके मगन हुआ परिवार
जितने दिन बिटिया रहे उतने दिन त्यौहार
उस मानव का विश्व में , होता है सत्कार.
त्राहि त्राहि करने लगी जनता चीख पुकार
इतनी भीषण हो गयी, मंहगाई की मार
हिम्मत कहती है सदा,कभी न मानो हार,
दुःख के परबत को तभी, कर सकते हो पार
सावन आया झूम के रिमझिम पड़ी फुहार
धरती भी करने लगी ख़ुद अपना सिंगार
डाली पर झूला पड़ा ,झूल रहे नर नार
झूम रहे धरती गगन , झूम रहा संसार
बिटिया आई मायके मगन हुआ परिवार
जितने दिन बिटिया रहे उतने दिन त्यौहार
मैं मूरख निर्गुण रही , मन में रहा विकार
लोभ वासना में तुझे,मैंने दिया बिसार
सच्चे मन से ए सिया, जप तू यदि करतार
तुझ पर खुल ही जायेगे, सद्बुद्धि के द्वार
तुझ पर खुल ही जायेगे, सद्बुद्धि के द्वार
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