कहाँ दम टूटे जाये आदमी का
भरोसा क्या हैं तेरी ज़िन्दगी का
जरुरत को अगर अपनी घटा ले
समय कट जायेगा फिर मुफलिसी का
ग़मे दुनिया में क्यूं उलझी हुई है
सकूं पायेगी सज़दा कर उसी का
किसी रोते हुए को ग़र हँसा दे
सबब मिल जायेगा सच्ची ख़ुशी का
फ़क़त मुझको सहारा है ख़ुदा का
सिला मिलता हैं सच्ची बंदगी का
यकीं तो बस ख़ुदा की जात का है
ज़माने में कहाँ कोई किसी का
ज़माना कब समझ पाया सिया को
मिज़ाज अपना रहा है सादगी का
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