नफरत का ज़माने में गर नाम नहीं होता
इन्सान कभी इतना बदनाम नहीं होता
राधा की मोहब्बत वो मीरा की इबादत है
ये इश्क नहीं होता ग़र श्याम नहीं होता
क़िस्मत से जियादा तुम हाथों पे यकीं रक्खो
हो सच्ची लगन जिस में नाकाम नहीं होता
ये इश्क का अफसाना है सबसे अलग इसमें
आगाज़ तो होता है,अंजाम नहीं होता
यह जा के कोई कह दे इस दौर के ज़ालिम से
ज़ालिम का कभी अच्छा अंजाम नहीं होता
बेटी जो हुई पैदा माहोल में मातम है
बेटा अगर आ जाये कोहराम नहीं होता
यह दाद जो मिलती है शेरों पे सिया तुझ को
कोई भी बड़ा इस से ईनाम नहीं होता
बहुत बहुत खूब सिया जी...
ReplyDeleteहर शेर लाजवाब!!