Tuesday 21 February 2012

हर शख्स कह रहा है यहाँ पर खुदा हूँ मैं

ग़ज़ल

क्यूं तुझको लग रहा है कि तुझसे जुदा हूँ मैं
मुझमें तू खुद को देख तेरा आईना हूँ मैं

ऐ दिल ! सभी ने तोड़ दिया है यकीन तेरा
दुनिया की बात क्या करूँ ख़ुद से ख़फ़ा हूँ मैं

बस तेरा आसरा है मुझे ऐ मेरे खुदा
सजदे में तेरे हर घडी महवे-दुआ हूँ मैं

अल्लाह रे ज़माना-ए-हाज़िर का क्या करें
हर शख्स कह रहा है यहाँ पर खुदा हूँ मैं

कितना ज़माना हो गया भूली हूँ मैं हँसी
लगता हैं जैसे दर्द का इक सिलसिला हूँ मैं

तेरे बगैर मैं तो अधूरी थी शायरी
पहचान हुई खुद से ये जाना 'सिया' हूँ मैं

-सिया सचदेव

No comments:

Post a Comment