Friday 23 December 2011

तिरे सवाल के यूं तो जवाब इतने हैं

किताबे जीस्त में ज़हमत के बाब इतने हैं 
ज़रा सी उम्र मिली है अज़ाब इतने हैं .

जफा फरेब तड़प दर्द ग़म कसक आंसू ..
हमारे सामने भी इन्तखाब इतने हैं 

समन्दरों को भी पल में बहाके ले जाए
हमारी आँख में आंसू जनाब इतने हैं

नकाबपोशों की बस्ती में शख्सियात कहाँ
हरेक शख्स ने पहने नकाब इतने हैं

हमारे शेर को दिल की नज़र की हाजत है ...
हरेक लफ्ज़ में हुस्नो-शबाब इतने हैं

हमें तलाश है ताबीर की मगर हमदम
छिपा लिया है सभी कुछ ये ख्वाब इतने हैं

कभी ज़ुबान खुली तो बताएँगे हम भी
तिरे सवाल के यूं तो जवाब इतने हैं

.तमाम कांटे भरे हैं हमारे दामन में
तुम्हारे वास्ते लाये गुलाब इतने हैं

मैं चाह कर भी नहीं कर सकी कभी पूरे
तुम्हारी आँख में पोशीदा ख्वाब इतने हैं

कभी ज़ुबान खुली तो बताएँगे हम भी
हमें जनाब से लेने हिसाब इतने हैं

\वफ़ा के बदले वफ़ा क्यूँ 'सिया' नहीं मिलती
सवाल एक है लेकिन जवाब इतने हैं

4 comments:

  1. बहुत खूब सिया जी...
    हर शेर लाजवाब है..

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  2. समन्दरों को भी पल में बहाके ले जाए
    हमारी आँख में आंसू जनाब इतने हैं

    नकाबपोशों की बस्ती में शख्सियात कहाँ
    हरेक शख्स ने पहने नकाब इतने हैं

    क्या खूब शेर कहे हैं…दिल पर असर करने वाले!

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  3. to yahaan chhupee hain aap.... khojne vaale ne khoj hee liya. ab padhoonga ek ek ghazal aur lutf uthaaoonga. kament to aapko pataa hai ki main kya likhoonga.... bas VAAH!!!!

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