Thursday 22 September 2011

जीने के बहाने आ गए

सामने आँखों के सारे दिन सुहाने आ गए
याद हमको आज वह गुज़रे ज़माने आ गए

आज क्यूँ उन को हमारी याद आयी क्या हुआ
जो हमें ठुकरा चुके थे हक़ जताने आ गए

दिल के कुछ अरमान मुश्किल से गए थे दिल से दूर
ज़िन्दगी में फिर से वह हलचल मचाने आ गए

ग़ैर से शिकवा नहीं अपनों का बस यह हाल है
चैन से देखा हमें फ़ौरन सताने आ गए

उम्र भर शामो सहर मुझ से रहे जो बेख़बर
बाद मेरे क़ब्र पे आंसू बहाने आ गए

हैं "सिया' के साथ उसके शेर और उसकी ग़ज़ल
हाथ अब उसके भी जीने के बहाने आ गए

1 comment:

  1. वाह बेहतरिन गजल की पेश कश वाकेइ जवाव नही बल्कि लाजवाव हैँवाह बेहतरिन गजल की पेश कश वाकेइ जवाव नही बल्कि लाजवाव हैँ

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