Saturday 23 July 2011

बेनाम ख़त

आज उनका ख़त मुझे बेनाम आया 
शाम आयेंगे फ़क़त पैग़ाम आया 

पास आकर दिल की कोई बात कर 
ये लिखा उसने तो कुछ आराम आया 

आंसुओं से भीग कर तर ही हुआ 
जिस वरक आपका इक नाम आया 

आपकी ख़ुश्बू से वो लबरेज़ था 
जब मेरे नज़दीक वो गुलफाम आया 

डूब कर इस ज़िन्दगी को देखना 
ये हुनर सच आज मेरे काम आया


है ज़हर उसमें मुझे मालूम सिया
बादे -मुद्दत हाथ में इक जाम आया 

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