Tuesday 19 April 2011

मंज़र शनासी

दिन तडपता रात प्यासी ले गया
वो मेरी सारी उदासी ले गया

दे गया कुछ ख़्वाब आँखों में मेरी
नींद लेकिन अच्छी खासी ले गया

दिल जिसे कहते हैं हम तुम प्यार में
चीज़ है आख़िर ज़रा सी ले गया

अब गुजरना वक़्त का आसां नहीं
वो मेरी मंज़र शनासी ले गया

कर गया एक खेल चाहत का "सिया"
दिल से लेकिन वो दुआ सी ले गया










सिया

1 comment:

  1. और इतनी ही खूबसूरत ये ग़ज़ल भी। क्‍या अंदाजे-बयां है। वाह। ऐसे ही लिखती रहें।

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