दिल भी क्यूं कर तबाह कर डाले
तुमने कितने गुनाह कर डाले
दिल की बस्ती न हो कभी वीरां
दर्द दिल में तो चाह का डाले
उसकी रहमत में हमको कर शामिल
जो सितारों को माह कर डाले
रोशनी उसको रास ना आई
उसने कमरे सियाह कर डाले
हम "सिया" क्या बताएं अब तुमको
हमने रस्ते भी गाह कर डाले
सिया
तुमने कितने गुनाह कर डाले
दिल की बस्ती न हो कभी वीरां
दर्द दिल में तो चाह का डाले
उसकी रहमत में हमको कर शामिल
जो सितारों को माह कर डाले
रोशनी उसको रास ना आई
उसने कमरे सियाह कर डाले
हम "सिया" क्या बताएं अब तुमको
हमने रस्ते भी गाह कर डाले
सिया
गज़ल इत्यादि की मुझे समझ नहीं है...इसलिए नहीं जानता कि क्या और कैसी टिपण्णी करनी चाहिए लेकिन कोशिश ज़रूर करूँगा आपकी रचनाओं को समझने की और आपसे बहुत कुछ सीखने की :-)
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