Monday 21 March 2011

ग़ज़ल

आँख से आंसू बह जाते हैं
लेकिन सबकुछ कह जाते हैं

जो दुनिया को राह दिखाएं

वो ही तनहा रह जाते हैं

प्यार किया है आखिर उससे

जुल्म भी उसके सह जाते हैं

शब के सन्नाटे का आलम

ख्वाब भी डर कर रह जाते हैं

पाएंगे क्या खाक  किनारा

जो पानी में बह जाते हैं

मोती उनको ही मिलते हैं

जो सागर की तह जाते हैं

हमने बस इक तुझको माँगा

आज "सिया" से कह जाते हैं





 सिया












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