मैं अक्सर सोचा करती हूँ , तुम कैसे हो, तुम कैसे हो
तुम ख़ुश्बू बेला गुलाब से, तुम हर पल चन्दन जैसे हो
धूप हो उजली सर्दी की तुम, तुम रातें रोशन पूनम की
तुम गर्मी से आहत मन की राहत सावन जैसे हो
मैंने तुमको दे डाला दिल, सोचो कैसे होगे तुम
तुम हो मेरी जान सनम तुम दरिया सागर जैसे हो
काली रातों के चराग तुम, तन-मन रौशन करते हो
राह दिखाओ भटके मन को तुम तो बिलकुल वैसे हो
जैसा अक्स ख्यालों में था, तुमको वैसा पाया है
तुम "सिया" की सोच थी जैसी जानम सचमुच वैसे हो
सिया
तुम ख़ुश्बू बेला गुलाब से, तुम हर पल चन्दन जैसे हो
धूप हो उजली सर्दी की तुम, तुम रातें रोशन पूनम की
तुम गर्मी से आहत मन की राहत सावन जैसे हो
मैंने तुमको दे डाला दिल, सोचो कैसे होगे तुम
तुम हो मेरी जान सनम तुम दरिया सागर जैसे हो
काली रातों के चराग तुम, तन-मन रौशन करते हो
राह दिखाओ भटके मन को तुम तो बिलकुल वैसे हो
जैसा अक्स ख्यालों में था, तुमको वैसा पाया है
तुम "सिया" की सोच थी जैसी जानम सचमुच वैसे हो
सिया
nice lines ! keep it up siya ji !
ReplyDelete"काली रातों के चराग तुम, तन-मन रौशन करते हो
ReplyDeleteराह दिखाओ भटके मन को तुम तो बिलकुल वैसे हो"
क्या शानदार लिखा है आपने? आपकी लेखनी बहुत ही गौरवशाली है! सिया जी, धन्यवाद"
"काली रातों के चराग तुम, तन-मन रौशन करते हो
ReplyDeleteराह दिखाओ भटके मन को तुम तो बिलकुल वैसे हो"
बहुत उम्दा रचना गीत!