उम्र से चाहे कोई कितना बड़ा होता है
तिफ़्ल ए मासूम हर एक दिल में छुपा होता है
हँसते चेहरे लिए फिरते हैं मेरे शहर के लोग
लेकिन इक ज़ख्म हर इक दिल में दबा होता है
मैंने चेहरे से हर अहसास मिटा डाला मगर
फिर भी आँखों से अयाँ दर्द मेरा होता है
तंज़ के तीर चलाने में हैं माहिर अहबाब
वार कैसे हो उन्हें खूब पता होता है
माँ पे क़ुर्बान भी होकर मैं रहूंगी मक़रूज़
इससे ममता का कहाँ क़र्ज़ अदा होता है
सिर्फ इस बात से बरहम है ज़माना ए सिया
अपना अंदाज़ ज़माने से जुदा होता है
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