जब भी हम तेरी ज़ियारत को चले आते हैं
ऐसा लगता है इबादत को चले आते हैं
बस दिखावे की मुहब्बत को चले आते हैं
लोग रस्मन भी अयादत को चले आते हैं
देखकर आपको इस दिल को क़रार आ जाए
अपनी आँखों की ज़रुरत को चले आते हैं
जब भी घबराने सी लगती है तबीयत अपनी
ऐ ग़ज़ल हम तिरी ख़िदमत को चले आते हैं।
हम फकीराना तबियत हैं हमें क्या लेना
लोग बेवज्हा सियासत को चले आते हैं।
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