Sunday 7 May 2017

मरासिम दर्द से ग़हरे हैं मेरे

मसाइब हमसफ़र रहते हैं मेरे
मरासिम दर्द से ग़हरे हैं मेरे

कोई जब पोंछने वाला नहीं है
तो फिर ये अश्क़ क्यों बहते है मेरे

सभी रस्ते हुए मसदूद जब तो
तेरी जानिब क़दम उट्ठे हैं मेरे

मुझे ग़ैरों से कब शिकवा है कोई
मुख़ालिफ़ आज तो अपने हैं मेरे

नहीं आती मुझे तख़रीब कारी
नज़रिये आपसे अच्छे है मेरे

कहा उसने सिया साँसो पे तेरी
तेरी हर फ़िक्र पर पहरे मेरे

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