किस तरह कहदे की अब आज़ाद हम
शाद होना था मगर नाशाद है हम ।
जश्न ए आज़ादी पे क्या खुशियां मनाये
खोखली होती हुई बुनियाद है हम ।
ख़ौफ़ के साये में कैसे जी रहे हैं
किस तरह कहदे अभी आबाद है हम ।
देशभक्तों ने किये बलिदान थे जो
पूछते है आज वो क्या याद हैं हम।
लुट रही हैं इज़्ज़ते बेटी बहन की
अनसुनी जैसे कोई फ़रियाद है हम ।
बेटियों को फैसलों का हक़ नहीं हैं
क़ैद रक्खा हैं उन्हें सय्याद है हम ।
लड़ रहे हैं मज़हबों के नाम पर सब
फूट आपस में हैं और बर्बाद है हम
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