Monday 29 August 2016

जो दिल दुखाये वो किस्सा तमाम करना है

सुकूँ से जीने का फिर इंतज़ाम करना है 
जो दिल दुखाये वो किस्सा तमाम करना है

लगा रहे हैं जो दुनिया में आग नफरत की 
हमें तो उनका ही जीना हराम करना है 
 
जो नफ़रतों की फ़ज़ाओं में साँस लेते हैं 
मोहब्बतों का उन्हें भी  गुलाम करना है 

जो फूट डालना चाहेंगे  भाईचारे में 
उन्हें तो दूर से  राम राम करना हैं 

बहुत से लोग जिन्हें दोस्ती के परदे में हमारे ख़्वाब हमी पर हराम करना है

जो अम्नो चैन का पैग़ाम दे ज़माने को हमेशा उनका हमें एहतराम करना है

हमें सभी से रवादारियां निभाते हुए 
हर एक शख्स को झुक कर सलाम करना है 




Saturday 13 August 2016

योमे आज़ादी के मौके पर एक अदना सी काविश

किस तरह कहदे की अब आज़ाद हम 
शाद होना था मगर नाशाद है हम 

जश्न ए आज़ादी पे क्या खुशियां मनाये 
 खोखली होती हुई  बुनियाद है हम 

ख़ौफ़ के साये में कैसे जी रहे हैं 
किस तरह कहदे  अभी आबाद है हम 

देशभक्तों ने किये बलिदान थे जो पूछते है आज वो क्या याद हैं हम।


लुट रही  हैं इज़्ज़ते  बेटी बहन की 
अनसुनी जैसे कोई फ़रियाद है हम 

बेटियों को फैसलों का हक़ नहीं  हैं 
क़ैद रक्खा हैं उन्हें सय्याद है हम 

लड़ रहे हैं मज़हबों के नाम पर सब 
फूट आपस में हैं और बर्बाद है हम 

योमे आज़ादी के मौके पर एक अदना सी काविश

किस तरह कहदे की अब आज़ाद हम 
शाद होना था मगर नाशाद है हम 

जश्न ए आज़ादी पे क्या खुशियां मनाये 
 खोखली होती हुई  बुनियाद है हम 

ख़ौफ़ के साये में कैसे जी रहे हैं 
किस तरह कहदे  अभी आबाद है हम 

देशभक्तों ने किये बलिदान थे जो पूछते है आज वो क्या याद हैं हम।


लुट रही  हैं इज़्ज़ते  बेटी बहन की 
अनसुनी जैसे कोई फ़रियाद है हम 

बेटियों को फैसलों का हक़ नहीं  हैं 
क़ैद रक्खा हैं उन्हें सय्याद है हम 

लड़ रहे हैं मज़हबों के नाम पर सब 
फूट आपस में हैं और बर्बाद है हम