Tuesday, 5 May 2015

दवा लगे न लगे हमको कुछ दुआ ही लगे

मर्ज़ है कौन सा आखिर ये कुछ पता ही लगे
दवा लगे न लगे हमको कुछ दुआ ही लगे 

हर एक रूह में इक दर्द सा छुपा ही लगे
हर एक शख़्स क्यूँ खुद से ख़फ़ा ख़फ़ा ही लगे
जहाँ भी है वो दुआ है के खैरियत से हो
मिले भले न मिले उसका कुछ पता ही लगे
नहीं है कोई जो बे -ऐब नस्ल ए आदम में
वो देवता हैं तो मुझको भी देवता ही लगे
न जाने कितने मोहब्बत के रंग हैं उसमें
मैं जब भी देखूँ वो चेहरा नया नया ही लगे
क्यों उसको रहती हैं हम से शिकायतें इतनी
भला भी काम हमारा जिसे बुरा ही लगे
शब ए हयात की ये शम्मा बुझने वाली है
चराग़ ए दिल को हमारे ज़रा हवा ही लगे
siya

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