Tuesday 17 January 2012

छुपाए हैं हज़ारों दर्द ये बेहद करीने से।


धुंआ बन बन के उठते हैं हमारे ख्वाब सीने से
परेशान हो गए ऐ ज़िन्दगी घुट घुट के जीने स


 हमें  तूफ़ान से  टकरा  के  दो  दो  हाथ  करने  हैं
"जिसे साहिल की हसरत हो उतर जाए सफ़ीने से"


चले तो थे निकलने को, पलक पर थम गये ऑंसू
छुपाए हैं हज़ारों दर्द ये बेहद करीने से।


 दुआ  से  आपको  अपनी  वो मालामाल  कर देगा 
 लगाकर देखिए तो आप भी मुफलिस को सीने  से 


 मुझे रोते हुए देखा, दिलासा यूँ दिया मॉं ने 
उतर  आएगी ऑंगन में परी चुपचाप जीने  से


अगर होता  यही  सच  तो  समंदर  हम बहा  देते
'सिया' होगा न कुछ हासिल कभी ये अश्क पीने से।

1 comment:

  1. वाह!!
    बेहतरीन सिया जी...

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