माना बेरंग ज़िन्दगानी है
उम्र हर हाल में बितानी है॥
इश्क़ में और कुछ नहीं दरकार
ज़ख्म पाना हैं चोट खानी है॥
हुस्न पर इस क़दर ग़ुरूर है क्यूँ
याद रख्खो यह जिस्म फ़ानी है॥
भीगा मौसम है अब तो आ जाओ
देखो फसलों का रंग धानी है॥
उनके कूचे से होके आई :सिया:
यह हवा इस लिए सुहानी है॥
उम्र हर हाल में बितानी है॥
इश्क़ में और कुछ नहीं दरकार
ज़ख्म पाना हैं चोट खानी है॥
हुस्न पर इस क़दर ग़ुरूर है क्यूँ
याद रख्खो यह जिस्म फ़ानी है॥
भीगा मौसम है अब तो आ जाओ
देखो फसलों का रंग धानी है॥
उनके कूचे से होके आई :सिया:
यह हवा इस लिए सुहानी है॥
हुस्न पर इस क़दर ग़ुरूर है क्यूँ
ReplyDeleteयाद रख्खो यह जिस्म फ़ानी है॥
सियाजी, आपकी यह गजल लाजबाव है, आपने जीवन की झणभंगुरता को रेखांकित किया है। हुस्न पर सभी गुरूर करते हैं लेकिन सच्चाई केवल आप ही समझ पाई हैं। मेरे मित्र व मशहूर शायर केके सिंह मयंक कहते हैं
ये सुलगता हुस्न लेकर मत उतरना झील में
आग पानी में लगेगी मछलियां जल जायेंगी