दर्द हद्द से बढ़ा लिया मैंने
संग से दिल लगा लिया मैंने
अब सहर हो या शब की ज़ुल्मत हो
शिद्दते _ग़म बढ़ा लिया मैंने
तज़किरा आप का नहीं होगा
राज़ दिल में छुपा लिया मैंने
दाग-ए-दिल से जो रौशनी ना हुई
अपना दामन जला लिया मैंने
क्यों वफ़ा का यकीं नहीं उसको
जिसको दिल में समा लिया मैंने
जब भी पूछा किसी ने हाल मेरा
खुद से खुद को हंसा लिया मैंने
ऐ सिया ज़िन्दगी हो हंस हंस कर
हद्द से ज्यादा निभा लिया मैंने
संग से दिल लगा लिया मैंने
अब सहर हो या शब की ज़ुल्मत हो
शिद्दते _ग़म बढ़ा लिया मैंने
तज़किरा आप का नहीं होगा
राज़ दिल में छुपा लिया मैंने
दाग-ए-दिल से जो रौशनी ना हुई
अपना दामन जला लिया मैंने
क्यों वफ़ा का यकीं नहीं उसको
जिसको दिल में समा लिया मैंने
जब भी पूछा किसी ने हाल मेरा
खुद से खुद को हंसा लिया मैंने
ऐ सिया ज़िन्दगी हो हंस हंस कर
हद्द से ज्यादा निभा लिया मैंने
बहुत खूब
ReplyDelete"बहुत बहुत शुक्रिया!
ReplyDeleteएक एक शब्द अनमोल है!"