Wednesday 23 February 2011

ग़ज़ल




मेरे यार मुझको तू हंसना सिखा दे 


घटाओं को खुल के बरसना सिखा दे


कोई भटकती हुई रूह हूँ मैं 
मुझे अपनी आँखों में बसना सिखा दे 


नई हूँ मुहब्बत की राहों में आख़िर
मुझे हिज्र में अब तरसना सिखा दे


सुना है की ज़ुल्फों में जादू बड़ा है 
ज़रा मुझको ज़ुल्फों से डसना सिखा दे


बड़ी कोशिशें हैं मुहब्बत को सीखूं 
"सिया" को अब का बरस ना सिखा दे 
 

सिया सचदेव  

1 comment:

  1. "नई हूँ मुहब्बत की राहों में आख़िर
    मुझे हिज्र में अब तरसना सिखा दे

    सुना है की ज़ुल्फों में जादू बड़ा है
    ज़रा मुझको ज़ुल्फों से डसना सिखा दे"

    बहुत बढ़िया

    ReplyDelete