Saturday 30 May 2015

कैसे जीतोगे अगर हार से डर लगता है

क्यूँ  तुम्हें लश्कर ए जर्रार  से डर लगता है 
कैसे जीतोगे अगर  हार से डर लगता है 

एक हल्की सी भी आहट से सहम जाती हूँ 
अब तो हर साया ए दीवार से डर लगता है 

आईने की भी निगाहों  में मुहब्बत  न रही 
 अब  हमें बा ख़ुदा  सिंगार  से  डर  लगता  है

तुम में और हम  में हमेशा से ये ही फर्क  रहा 
जीत से  हम को तुम्हें हार  से  डर लगता है 

सोचे-समझे बिना जो  कुछ भी उगल देते हैं 
उनकी बेबाक़ी ए गुफ़्तार से डर लगता है 

फूल तो ख़ार के दामन से लगे रहते हैं 
फूल ये कैसे कहे ख़ार से डर लगता है .

बात सच कहने को कह दूँ मैं बहरहाल मगर 
सर पे लटकी हुई तलवार से डर लगता है 

नाखुदा से कोई उम्मीद नहीं है बाक़ी 
अब हमें वाकई मंझधार से डर लगता है.

और कितना पढ़े हम  खून से लथपथ खबरें  
अब हमें सुब्ह के अखबार से डर लगता है

 वक़्त के पावं कहीं रौंद न डाले हमको 
ए सिया वक़्त की रफ़्तार से डर लगता है

Wednesday 20 May 2015

मुझ पर तेरा फिर से इक एहसान हुआ

दिल में मेरे पैदा फिर अरमान हुआ
मुझ पर तेरा फिर से इक एहसान हुआ
जाने कैसा ये मेरा सम्मान हुआ
मुझको लगता है मेरा अपमान हुआ
वक़्त ने मेरे चेहरे पर ये क्या लिक्खा
देख के मुझको आईना हैरान हुआ
जान बूझ कर हमने धोका खाया है
सोच समझ कर भी ये दिल नादान हुआ
जिसकी ख़ातिर दुनिया से मैं ग़ाफ़िल थी
आज हुनर वोही मेरी पहचान हुआ
इन होठों पर हँसी न आये आज के बाद
ज़ारी मेरे हक़ में ये फरमान हुआ,
दुनिया ने किस दौर में किसको बख़्शा हैं
सीता का भी इस जग में अपमान हुआ
siya

Tuesday 19 May 2015

रब से मांगी हुई दुआ हो तुम

मेरी चाहत की इंतेहा हो तुम
रब से मांगी हुई दुआ हो तुम
इतनी मुद्दत के बाद ये जाना
ज़िंदगानी का फ़लसफ़ा हो तुम
ख़ुद को देखूँ तो, तुम नज़र आओ
अक्स मेरा है आईना हो तुम
दिल के आगे मैं हार बैठी हूँ
जानती हूँ की बेवफा हो तुम
मेरी ख़ुशियाँ हैं तुमसे वाबस्ता
क्या बताऊ तुम्हें की क्या हो तुम
उड़ गए होश देख कर तुमको
मैं हूँ बेख़ुद मेरा नशा हो तुम
ज़ख्म मेरे महकने लगते है
मेरे हर दर्द की दवा हो तुम
siya

Wednesday 13 May 2015

उसकी बातो में दम नहीं होता

मुझको यूँहीं भरम नहीं होता
उसकी बातो में दम नहीं होता
कितने खुदगर्ज़ ओ बेमुरव्वत हो
तुमको एहसास ग़म नहीं होता
दिल तो पत्थर का हो गया तेरा
मेरे अश्क़ों से नम नहीं होता
दिल तो छलनी किया है अपनों ने
इतना ग़ैरों में दम नहीं होता
इसका कोई ईलाज है तो बता
दर्द दिल का ये कम नहीं होता 

सांस लेना भी हो गया भारी

ख़्वाहिशों पर थी कैफियत तारी 
सांस लेना भी हो गया भारी 

कोई चेहरा रहा निगाहों में 
रात आँखों में काट गयी सारी 

इब्तिदा किसने की मोहब्बत की 
सिलसिला आज भी हैं ये ज़ारी 

सिर्फ इक बात मैंने ठानी है 
यूँहीं रखना है  अपनी ख़ुद्दारी 

थी बहुत दूर मंज़िल ए मक़सूद 
हर क़दम पर थी एक दुश्वारी 

बस्तियाँ फूँकने को काफ़ी है 
सिर्फ हल्की सी एक चिंगारी 

हम ज़माने में रह गए पीछे 
क्या करे हम में थी वफ़ादारी 

लोग नादान तुमको कहने लगे 
इतनी अच्छी नहीं हैं होशियारी 

पूछ मत हाल अब हमारा तू 
एक दिल है हज़ार बीमारी 

आप तो बदहवास हो बैठे 
मैं निभाती रही रवादारी 

जिस्म तो हार ही चुका था सिया 
हौसला फिर भी मैं नहीं हारी 

Khwaahishon par thi "Kaifiyat" taari 
Saans Lena Bhi ho gaya bhari 

koyi chehra raha nigahon mein 
raat aankho mein kat gayi saari 

ibteda kisne ki mohbbat ki 
silsila aaj bhi hain  wo  zaari

sirf ik baat maine thaani hai 
yuheen rakhni hai  apni khuddari 

thi bahut der manzil e maqsood 
har qadam par thi ek dushvaari 

bastiyan foonkne ko kaafi hain 
sirf halki si ek chingaari 

hum zamne mein rah gaye peeche 
kya kare hum mein thi wafadari 

log naadan tumko kahne lage 
itni achchi nahi hain hoshiyaari  

puch mat haal ab hamara tu 
ek dil hai hazaar bemaari 

aap to badhawas ho baithe 
main nibhati rahi rawadaari 

jism to haar hi chuka tha siya 
hausla phir bhi main nahi haari 

Friday 8 May 2015

मेरा हर काम कल पे टल रहा है

अँधेरा सा हुआ  , दिन ढल रहा है 
मेरा हर काम कल पे टल रहा है 

बज़ाहिर खुश्क सी आँखे है लेकिन 
ये सेहरा भी कभी जल थल रहा है 

गला घोंटा गया है सच का लेकिन 
 यहाँ पर झूठ अब तक फल रहा है 

गुज़रती जा रही है ज़िंदगानी 
बताये क्या तुम्हें क्या चल रहा है 

बड़ी शिद्दत से इक सपना अधूरा
मेरी आँखों में कब से  पल रहा है  

हिक़ारत से इसे न आज देखो 
कभी इसका सुनहरा कल रहा है 

क़सीदे पढ़ रहा था कल जो मेरे 
उसे अब नाम मेरा खल रहा है 

ग़मो की धूप है सारे जहाँ में 
हमारे सर पे सूरज जल रहा है 

मैं जिसको ओढ़ कर निकली थी सर पे  
तुम्हारे नाम का आँचल रहा है 



Tuesday 5 May 2015

दवा लगे न लगे हमको कुछ दुआ ही लगे

मर्ज़ है कौन सा आखिर ये कुछ पता ही लगे
दवा लगे न लगे हमको कुछ दुआ ही लगे 

हर एक रूह में इक दर्द सा छुपा ही लगे
हर एक शख़्स क्यूँ खुद से ख़फ़ा ख़फ़ा ही लगे
जहाँ भी है वो दुआ है के खैरियत से हो
मिले भले न मिले उसका कुछ पता ही लगे
नहीं है कोई जो बे -ऐब नस्ल ए आदम में
वो देवता हैं तो मुझको भी देवता ही लगे
न जाने कितने मोहब्बत के रंग हैं उसमें
मैं जब भी देखूँ वो चेहरा नया नया ही लगे
क्यों उसको रहती हैं हम से शिकायतें इतनी
भला भी काम हमारा जिसे बुरा ही लगे
शब ए हयात की ये शम्मा बुझने वाली है
चराग़ ए दिल को हमारे ज़रा हवा ही लगे
siya

Monday 4 May 2015

नहीं कुछ फर्क भी शाम- ओ -सहर में

फ़िज़ा रहती है कोहरे के असर में
नहीं कुछ फर्क भी शाम- ओ -सहर में

तुम्हें ये भी नहीं मालूम शायद
सभी तनहा हैं जीवन के सफर में

मुझे मिलना नहीं है अब किसी से
बहुत खुश हूँ मैं तनहा अपने घर में

तेरे दिल तक पहुँचना चाहते हैं
अभी ठहरे हैं हम तेरी नज़र में

फ़क़ीराना तबियत पायी मैंने
ये दौलत ख़ाक़ है मेरी नज़र में

मेरा घर साथ ही चलता है मेरे
कहीं भी मैं अगर निकलूं सफर में

मत पूछो जी रहे हैं बेजान किस तरह से

इस दिल के मिट गए हैं अरमान किस तरह से 
मत पूछो जी रहे हैं बेजान किस तरह से 

किस हौसले से आख़िर खुद को संभाला हमने 
 आये हैं ज़िंदगी में तूफ़ान किस तरह से 

हालात ने कुछ ऐसा मजबूर कर दिया था 
हम जानके बने हैं अंजान  किस तरह से 

कुछ भी नहीं रहेगा हैं ये जहान फ़ानी 
सब जोड़ते हैं फिर भी सामान  किस तरह से 

गुज़रे कहाँ कहाँ से हम उनकी पैरवी में 
 ज़ारी हुए हैं  उनके  फ़रमान किस तरह से 

 इस बात का तुम्हेँ कुछ अंदाज़ा है फ़रिश्तों 
 दुनिया में जी रहे हैं इंसान किस तरह से 

हम आशिक़ी में उस की हद्द से गुज़र गए पर 
आया है दूरियों का फरमान किस तरह से 

इक उम्र ख़ुद के अंदर भटके है दरबदर हम 
खुद से हुई है अपनी  पहचान किस तरह से 


रिश्ते लहू के आज सभी सर्द हो गये

पत्ते शजर के सब्ज थे जो ज़र्द  हो गए 
रिश्ते लहू के आज सभी सर्द हो गये

क्या आज कोई काम उन्हें हमसे पड़ गया
दुश्मन हमारे किस लिए हमदर्द गए 

मासूम बच्चियों को निशाना बना लिया 
और ये समझ रहे के हम  मर्द हो गए 

औरत में ढूँढें  त्याग, दया, सहनशीलता 
औरत के नाम सारे ये दुःख  दर्द हो गए 

राहे वफ़ा में किसको मिली मंज़िले सिया 
कितने ही राही रास्ते की गर्द हो  गए 

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प्यार अपना ये मर गया शायद

कोई दिल से उतर गया शायद 
प्यार अपना ये मर गया शायद 

तेरी आँखें बुझी  बुझी सी हैं 
ख्वाब कोई बिखर गया शायद 

कांच सा था तेरा मेरा रिश्ता 
टूट कर जो बिखर गया शायद 

लाऊँ अब मैं कहाँ से ज़िंदादिली 
मेरा एहसास मर गया शायद 

इश्क़ का जो जूनून तारी था 
आज सर से उतर गया शायद 

मुझसे बेहतर कोई मिला होगा 
उसका दिल मुझसे भर गया शायद 

देख कर कर दिया है अनदेखा 
पास से वो गुज़र गया शायद 

राज़ वो मेरे जानने के लिए 
मेरे दुश्मन के घर गया शायद 

जाते जाते जता गया है वोह 
मुझपे एहसान कर गया शायद

और गिरते हो चोट खाते हो

आदतन रोज़ लड़खड़ाते हो 
और गिरते हो चोट खाते हो 

क़द्र रिश्तों की कुछ नहीं तुमको 
 तुम हमेशा ही दिल दुखाते हो 

 मैंने  तो सिर्फ प्यार बाँटा था 
तुम ये  नफरत कहाँ से लाते हो 

ख़ाक़ जिसने वफ़ा पे डाली है 
सामने उसके गिड़गिड़ाते हो 

 उम्र बीती है ठोकरें' खातें 
और फिर भी फ़रेब  खाते हो 


तुमसे उम्मीद क्या करे कोई   
 कितने एहसान तुम जताते हो 

हर इक कोशिश वहाँ इंसान बेकार होती है

जहाँ तक़दीर की हाइल कोई दीवार होती है 
हर इक कोशिश  वहाँ इंसान  बेकार होती है 

बड़ी पेचीदा होती है बहुत दुश्वार होती है 
बज़ाहिर देखने में राह  जो दुश्वार होती है 

यक़ीन जानो यही महसूस होता है की तुम आये 
अगर हल्की सी आहट भी पसे दीवार होती है 

 बहुत आँसू बहाती है ग़रीबी अपनी हालत पर 
किसी की मुफ़लिसी जब ज़ीनत ए बाज़ार होती है 

 उसे बस देखती रह जाती है मौजे हवादिस की 
की कैसे अज़्म वालों  की ये कश्ती पार होती है

मुख़ालिफ़ शाह के लब खोलने की किस में  हैं 
बग़ावत सुर्खरू किसकी भरे दरबार होती है  

रिश्ते नातों का हैं एहतराम आज भी

देखिये मेरे भारत में आकर ज़रा
रिश्ते नातों का हैं एहतराम आज भी
लाख पश्चिम की उलटी हवाएँ चले
मेरे भारत का ऊँचा है नाम आज भी

है पिता के लिए दिल में आदर बड़ा
माँ को देते है ऊँचा मक़ाम आज भी

सीख इंसानियत की वो बच्चो को दे
माँ ऊपर ये जिम्मा ये काम आज भी

अपने मेहमान को देवता मान कर
हँस के करते सब इंतज़ाम आज भी 

प्यार बाँटा है हमने सदा दोस्तों
है मोहब्बत से सबको सलाम आज भी
भूल जाते है पल भर में शिकवे गिले
प्यार से कोई कर लें गुलाम आज भी
प्रेम का रिश्ता पावन हमारे लिए
पूजे जाए यहाँ राधा श्याम आज भी।   

ग़म छुपाने का आता है हमको हुनर
हंसके करते है सबसे कलाम आज भी

दिल में भगवान का फिर वास नहीं हो सकता

दर्द दूजे का जो एहसास नहीं हो सकता
दिल में भगवान का फिर वास नहीं हो सकता
इन्द्रियों को भी करो वश में अगर इंसां हो
भूख जिंदा हो तो उपवास नहीं हो सकता
जिसको पढने में गुज़र जाए हज़ारों सदियाँ
ज़िन्दगी जैसा उपन्यास नहीं हो सकता ..
दफ़न हो जिसमें मुक़द्दर के उजाले सारे
इतना काला मेरा इतिहास नहीं हो सकता
ऐसी तन्हाई मेरे मन में बसी है की जहाँ
कोई इंसान मेरे पास नहीं हो सकता
मुस्कराहट की रिदा ओढ़ ली मैंने ए दोस्त
मेरे दुःख का तुम्हें आभास नहीं हो सकता
इतने दुःख सह के भी हंसती है लगातार सिया
और दुनिया को ये एहसास नहीं हो सकता

23 अप्रैल मेरी ज़िंदगी का एक मनहूस दिन जिस दिन काल के क्रूर हाथो ने हमसे हमारे भाई को छीन लिया था आज उसकी मौत को पूरा एक साल हो गया मगर एक दिन भी ऐसा नहीं बीता जो उसकी याद न आई हो।


आज तुम्हे हम सबसे बिछड़े
देखो पूरा साल हुआ
छोड़ गए तुम हमें बिलखता
सारा घर बद हाल हुआ
सारा फ़साना सारा अलमिया
सारी कहानी कल की है
लेकिन ये लगता है जैसे
बात इसी इक पल की है
वक़्त गुज़र जाता है लेकिन
दर्द कहाँ कम होता है
अपना कोई जब बिछड़े तो
दिल को कितना ग़म होता है
देखो घर के हर कोने में
याद तुम्हारी बसती हैं
जब देखूं तस्वीर तुम्हारी
दिल में टीस सी उठती है
कल तक जो चलता फिरता था
आज है बस तस्वीरों में
सारी ख़ुशियाँ रूठ गयी है
क्या लिक्खा तक़दीरो में
हम बहनो की आँखों का तुम
सूरज चाँद सितारा थे
तुमने कब इतना सोचा की
इनका तुम्हीं सहारा थे
तुम बिन कैसे कोई खुशियां
रास हमें अब आएगी
काम तो सब हो जाएंगे लेकिन
यादें बहुत रुलाएगी
Aaj tumeh hum sabse bichde
Dekho pura saal hua
Choodh gaye tum hame bilkhta
Sara ghar badhaal hua
Sara fasana sara almiya
Sari kahani kal ki hai
Lekin ye lagta hain jaise
Baat isi ik pal ki hai
Waqt guzar jaata hai lekin
Dard kahan kam hota hai
Apna koi jab bichhde to
Dil to kitna gham hota hai
Hum bahno ke aankho ka tum
Suraj chand sitaara the
Tumne kab itna bhi socha
Inka tumhi sahara the
Dekho ghar ke har kone mein
Yaad tumahari basati hain
Jab dekhu tasweer tumahari
Dil mein tees si uthti hai
Kal tak jo chalta firta tha
Aaj hai bus tasweeron mein
Sari khushyan ruth gayi hai
Kya likkkha taqdeeron mein
Hum bahno ke aankho ka tum
Ek chamakata taara the
Tumne itna kab socha ki
Tumhi sahara the
Tum bin kaise koyi khushiyan
Raas hame'n ab aayegi
Kaam to sab ho jaayenge
Lekin yaaden bahut rulaayegi