Thursday 17 April 2014

रिश्तों के सूखे है उपवन

रिक्त हुआ है मन का आँगन 
रिश्तों के सूखे है उपवन

महज़ औपचारिकता बरतें 
कहाँ दिलों में है अपनापन 

चकनाचूर हुए है सपनें 
छलनी छलनी है मेरा मन 

इक तूफ़ान उठा है दिल में 
अश्क़ों से भीगा है दामन

उनको दर्द सुनाये क्योंकर
पत्थर जैसा है जिनका मन

ऐसे भी कुछ क्षण आते हैं
मुश्किल हो जाता है जीवन

1 comment:

  1. वाह !
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