Thursday 22 August 2013

जब चरागों को नींद आती है

मुफ़लिसी जब सुकून पाती है 
 मुस्तक़िल गीत गुनगुनाती है 

भूख की आग जब सताती है 
सब उसूलों को लील जाती है

खौफ़ से रात थरथराती है 
जब चरागों को नींद आती है 

फूँक कर ज़ुल्मतों के पैराहन 
रौशनी भी धुँवा उड़ाती है 

चाँद के जिस्म में छिपी बुढ़िया 
रास्तों में दिए जलाती है 

हार के बैठ मत सिया जाना 
तेरी मंजिल तुझे बुलाती है 

 

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