मुफ़लिसी जब सुकून पाती है
मुस्तक़िल गीत गुनगुनाती है
भूख की आग जब सताती है
सब उसूलों को लील जाती है
खौफ़ से रात थरथराती है
जब चरागों को नींद आती है
फूँक कर ज़ुल्मतों के पैराहन
रौशनी भी धुँवा उड़ाती है
चाँद के जिस्म में छिपी बुढ़िया
रास्तों में दिए जलाती है
हार के बैठ मत सिया जाना
तेरी मंजिल तुझे बुलाती है
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